Saturday, 28 December 2024

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास

पृथ्वीराज चौहान 

by bee_nu_yadav
Sketch by Beenu Yadav

पृथ्वीराज चौहान, जिन्हें राजा पृथ्वीराज भी कहा जाता है, भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध योद्धा और राजाओं में से एक थे। वे चौहान वंश के राजा थे और 12वीं शताब्दी में अजमेर और दिल्ली के शासक के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनका जीवन वीरता, साहस और संघर्ष की कहानी है, जो भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।

प्रारंभिक जीवन

पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 ईस्वी में चौहान वंश के राजा सोमेश्वर और रानी कर्पूरी देवी के घर हुआ था। वे बचपन से ही वीर और कुशल योद्धा थे। उन्हें धनुर्विद्या और सैन्य रणनीति में निपुण बनाया गया था।

शासन और विजय

पृथ्वीराज चौहान ने बहुत कम उम्र में अजमेर का सिंहासन संभाला और जल्द ही दिल्ली पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया। उन्होंने कई युद्ध लड़े और विजय प्राप्त की।

  1. महसूर युद्धों में विजय - उन्होंने गुजरात के भीमदेव, कान्नौज के जयचंद और कई अन्य शासकों को हराया।
  2. तराइन के युद्ध - पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच हुए तराइन के युद्ध उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

तराइन का पहला युद्ध (1191)

तराइन का पहला युद्ध भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण युद्ध था,  जो 1191 ई. में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच लड़ा गया। मोहम्मद गोरी ने भारत के उत्तरी क्षेत्र में अपना साम्राज्य स्थापित करने के उद्देश्य से पृथ्वीराज चौहान के क्षेत्र पर आक्रमण किया। दोनों शक्तिशाली शासकों के बीच सत्ता और नियंत्रण की स्पर्धा ने इस युद्ध को जन्म दिया और यह युद्ध वर्तमान हरियाणा राज्य के तराइन (तौरू) के मैदान में लड़ा गया। जिसमे प्रिथ्वी राज चौहान ने मोहम्मद गोरी को पराजित किया और उसे जान बचा के भागना पडा। 

तराइन का दूसरा युद्ध (1192)

1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गोरी से हार गए। इस युद्ध में पृथ्वीराज को बंदी बना लिया गया और उनकी हत्या कर दी गई।  

पृथ्वीराज रासो ग्रन्थ के अनुसार जो चन्दबरदाई  द्वारा लिखा गया है, 1191 ई. में तराइन के पहले युद्ध में हारने के बाद, मोहम्मद गोरी ने अगले वर्ष एक बड़ी और संगठित सेना के साथ भारत पर फिर से आक्रमण किया। इस बार गोरी ने कूटनीति और छल का सहारा लिया और कई हिंदू शासकों को पृथ्वीराज के खिलाफ अपने पक्ष में कर लिया। और प्रारंभ में युद्ध पृथ्वीराज चौहान के पक्ष में था। उनके वीर सैनिकों ने दुश्मन सेना को पीछे धकेल दिया। लेकिन, मोहम्मद गोरी ने छल और कूटनीति का सहारा लिया। और गोरी ने रात के समय अचानक हमला किया, जो राजपूत परंपराओं के विरुद्ध था  इस प्रकार पृथ्वीराज को बन्दी बना लिया गया और उन्हे गजनी ले जाया गया और उन्हे अन्धा कर दिया गया था। गजनी में बंदी बनने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने गोरी की सभा में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। और चन्दबरदाई के साथ मिलकर एक निति बनाई और चन्दबरदाई कि पाङ्क्तिया सुनकर गजनी सुल्तान मोहम्मद गोरी पर शब्दभेदी बाण चलाकर उसकी हत्या कर दी और फिर दोनो ने स्वयं के प्राण त्याग दिये।

वह प्रसिद्ध पाङ्क्तियां इस प्रकार हैं -

"चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चुके चौहान।।" 

पृथ्वीराज रासो

पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर आधारित एक प्रसिद्ध महाकाव्य "पृथ्वीराज रासो" लिखा गया है, जिसे उनके दरबारी कवि चंदबरदाई ने रचा। इसमें उनके शौर्य और प्रेम कहानी को अद्भुत रूप में प्रस्तुत किया गया है।

 पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कथा 

पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता की अमर प्रेम कथा को वर्णित करता है। यह कहानी साहस, प्रेम और विद्रोह का अद्भुत उदाहरण है।

प्रेम की शुरुआत

पृथ्वीराज चौहान अजमेर और दिल्ली के शक्तिशाली शासक थे, जबकि संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थीं। पृथ्वीराज की वीरता और यश संयोगिता तक पहुंच चुका था। उन्होंने पृथ्वीराज की वीरता और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हें अपना हृदय समर्पित कर दिया, हालांकि दोनों ने एक-दूसरे को कभी नहीं देखा था।

जयचंद का विरोध

कन्नौज के राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान से शत्रुता रखते थे। जब संयोगिता ने पृथ्वीराज से विवाह की इच्छा जताई, तो जयचंद ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और उनका विवाह किसी और से तय करने का निर्णय लिया। जयचंद ने पृथ्वीराज को अपमानित करने के लिए अपनी बेटी के स्वयंवर में उन्हें आमंत्रित नहीं किया और उनके स्थान पर एक दर्पण में पृथ्वीराज की मूर्ति रखवाई।

संयोगिता का विद्रोह

स्वयंवर के दिन, संयोगिता ने सभी राजाओं को ठुकरा दिया और पृथ्वीराज की मूर्ति को वरमाला पहना दी। यह देखकर जयचंद क्रोधित हो गए, लेकिन इससे पहले कि वे कुछ कर पाते, पृथ्वीराज अपने वीर योद्धाओं के साथ स्वयंवर में पहुंच गए।

प्रेम का विजय

पृथ्वीराज चौहान ने साहसपूर्वक संयोगिता का अपहरण किया और अपने घोड़े पर बिठाकर उन्हें अजमेर ले आए। इस घटना को भारतीय इतिहास और लोककथाओं में एक महान प्रेम कथा के रूप में याद किया जाता है।

अंततः मिलन

संयोगिता और पृथ्वीराज ने विवाह किया और उनका प्रेम पूरे राज्य में प्रसिद्ध हुआ। हालांकि, उनके जीवन का अंत मोहम्मद गोरी के साथ हुए युद्ध में दुखद रहा, लेकिन उनकी प्रेम कहानी आज भी अमर है।

यह प्रेम कहानी भारतीय इतिहास में प्रेम और साहस का प्रतीक मानी जाती है और पृथ्वीराज रासो में इसे अत्यंत रोचक और भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

विरासत

पृथ्वीराज चौहान को एक वीर योद्धा और स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले राजा के रूप में याद किया जाता है। उनकी कहानी आज भी भारतीय लोककथाओं, कविताओं और इतिहास में जीवंत है।पृथ्वीराज चौहान की वीरता और बलिदान भारतीय संस्कृति और इतिहास में हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहेगा।

पृथ्वीराज चौहान और पृथ्वीराज रासो पर इतिहासकारों के मत

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु और पृथ्वीराज रासो पर इतिहासकारों के मत विभिन्न दृष्टिकोणों से होते हैं। कुछ इतिहासकारों ने इस ग्रंथ को ऐतिहासिक तथ्य के रूप में माना है, जबकि अन्य ने इसे साहित्यिक और काव्यात्मक दृष्टिकोण से देखा है। यहाँ कुछ प्रमुख इतिहासकारों के मत दिए हैं जो पृथ्वीराज रासो और पृथ्वीराज चौहान के जीवन और मृत्यु पर आधारित हैं:

1. अलेक्जेंडर कन्निंघम (Alexander Cunningham)

अलेक्जेंडर कन्निंघम, जो भारतीय पुरातत्व के प्रसिद्ध इतिहासकार थे, ने पृथ्वीराज रासो को ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण माना था, लेकिन उन्होंने इसे काव्यात्मक ग्रंथ के रूप में भी देखा। उनके अनुसार, पृथ्वीराज रासो में कुछ ऐतिहासिक तथ्य हैं, लेकिन चंदबरदाई ने काव्यात्मक भव्यता देने के लिए कुछ घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया। कन्निंघम के अनुसार, पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु एक दुखद घटना थी, जिसमें वह युद्ध में हरकर गोरी के हाथों पकड़ लिए गए थे। उनका मानना था कि इस ग्रंथ को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पूरी तरह सही मानना गलत होगा, क्योंकि इसमें कल्पना का भी मिश्रण है।

2. हेरमैन एंबुश (Hermann Aubert)

हेरमैन एंबुश, जो एक प्रसिद्ध जर्मन इतिहासकार थे, ने पृथ्वीराज रासो को एक साक्षात ऐतिहासिक ग्रंथ के रूप में नहीं देखा। उन्होंने इसे काव्य के रूप में समझा और माना कि इसमें ऐतिहासिक घटनाओं के साथ काव्यात्मक अलंकरण और नाटकीयता है। उनके अनुसार, पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान की वीरता और संघर्ष का चित्रण अधिक है, लेकिन यह ग्रंथ पूरी तरह से तथ्यात्मक नहीं है। एंबुश ने यह भी कहा कि पृथ्वीराज की मृत्यु एक वीरता की मृत्यु थी, लेकिन उनका इतिहास में अंत वास्तविकता से परे था।

3. डॉ. रज़िया सुलतान

डॉ. रज़िया सुलतान ने पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु पर अपने लेखों में यह माना कि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो में कवि की दृष्टि से घटनाओं का वर्णन किया था। उन्होंने इसे ऐतिहासिक दृष्टि से उतना महत्वपूर्ण नहीं माना, क्योंकि इस ग्रंथ में कई काल्पनिक और अतिशयोक्तियाँ हैं। हालांकि, उन्होंने पृथ्वीराज को एक वीर और नायक के रूप में चित्रित किया, जो अपनी भूमि और अपने राज्य के लिए अंत तक संघर्ष करता रहा। रज़िया सुलतान का मानना था कि पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज की वीरता को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है।

4. के.के. अग्रवाल

इतिहासकार के.के. अग्रवाल ने पृथ्वीराज रासो को एक मिश्रित ग्रंथ माना, जिसमें ऐतिहासिक तथ्य और काव्यात्मक रंग दोनों शामिल हैं। उनके अनुसार, चंदबरदाई ने पृथ्वीराज की वीरता को भव्यता देने के लिए कई घटनाओं को बढ़ा दिया, और यही कारण है कि यह ग्रंथ ऐतिहासिक रूप से पूरी तरह सटीक नहीं है। अग्रवाल का कहना था कि पृथ्वीराज की मृत्यु एक ऐतिहासिक तथ्य है, लेकिन यह ग्रंथ उसे एक नायक की वीरता के रूप में प्रस्तुत करता है, न कि केवल एक हार के रूप में।

5. जॉन कीथ (John Keay)

जॉन कीथ, जो एक ब्रिटिश इतिहासकार थे, ने भी पृथ्वीराज रासो पर अपनी टिप्पणियाँ दी हैं। उनके अनुसार, पृथ्वीराज चौहान का इतिहास और उसकी मृत्यु अधिकतर काव्यात्मक कृतियों पर आधारित है, और इन्हें वास्तविकता से अलग किया गया है। कीथ ने यह माना कि पृथ्वीराज रासो का मुख्य उद्देश्य भारतीय वीरता और पृथ्वीराज की महानता को चित्रित करना था, लेकिन यह ऐतिहासिक सत्य से परे था। उनका मानना था कि इस ग्रंथ को ऐतिहासिक तथ्यों के रूप में लेना गलत होगा, क्योंकि इसमें कई घटनाओं को सांस्कृतिक और काव्यात्मक रंगों में प्रस्तुत किया गया है।

6. रवींद्रनाथ ठाकुर (Rabindranath Tagore)

रवींद्रनाथ ठाकुर, जो भारतीय साहित्य के महान कवि थे, ने पृथ्वीराज रासो को भारतीय साहित्य के एक उत्कृष्ट काव्य के रूप में देखा, जिसमें युद्ध, प्रेम, और सम्मान के तत्व शामिल थे। हालांकि, उन्होंने इसे ऐतिहासिक दृष्टि से पूरी तरह से सही नहीं माना और इसे एक साहित्यिक काव्य के रूप में स्वीकार किया। उनका मानना था कि पृथ्वीराज रासो में ऐतिहासिक घटनाओं को काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है, और यह ग्रंथ भारतीय संस्कृति और वीरता का प्रतीक बन गया है।

तो दोस्तों! इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज रासो में चन्दबरदाई ने पृथ्वी राज चौहान की वीरता को बहुत ही बढा-चढा के प्रस्तुत किया है, अतः इस ग्रन्थ को पुर्णतः ऐतिहासिक नही माना गया। यह एक साहित्यिक काव्य के रूप मे स्वीकारा गया।
आप लोग भी बताइये आपका क्या मत है पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु और चन्दबरदाई द्वारा राचित इस महाकाव्य पर कमेंट में अपना मत जरूर लिखें।
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